सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख स्थल मोहनजोदड़ो के परीक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण तथ्य इसमें शामिल किए गए हैं । कोचिंग के इन नोट्स को पढ़कर आप कंपटीशन में अन्य लोगों से चार कदम आगे रहेंगे ।
सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख स्थल मोहनजोदड़ो
- मोहनजोदड़ो की खोज 1922 में राखालदास बनर्जी के द्वारा की गई ।
- मोहनजोदड़ो सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के दाएं तट पर स्थित हैं ।
- मोहनजोदड़ो के अन्य नाम सिंध का नखलिस्तान, सिंध का बाग, स्तूपों का शहर ।
- मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ होता है – मुर्दों का टीला ।
- मोहनजोदड़ो के दुर्ग टीला को स्तूप टीला कहा जाता है क्योंकि कूषाण शासक कनिष्क ने दुर्ग टीले पर एक स्तूप का निर्माण करवाया था ।
- मोहनजोदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा नगर माना जाता है ।
- मोहनजोदड़ो से नौ बार उजड़कर नौ बार बसने वाले शहर के साक्ष्य मिलते हैं । ( संभवतः यह आठ बार उजड़ा होगा )
मोहनजोदड़ो से प्राप्त संभावी मुद्रा में योगी की मूर्ति
- मोहनजोदड़ो से एक योगी की मूर्ति प्राप्त हुई है जिसमें उसे अपनी आंखों से नाक पर ध्यान केंद्रित करते हुए दिखाया गया है ।
- यह मूर्ति मूंछ विहीन, दादी युक्त, ललाट पर एक विशेष आभूषण पहने हुए दिखाया गया है, दाहिने हाथ की भुजा पर ताबीज पहने हुए हैं ।
- अर्नेस्ट मैके ने इसे पुजारी (पुरोहित) कहा है और इस मत का समर्थन जॉन मार्शल ने भी किया है ।
- ए. एल. बालश्रम ने अपनी पुस्तक इंक्रेडिबल इंडिया (अदभुत भारत) में इसे मंगोलियन पुजारी कहकर संबोधित किया है ।
- कई इतिहासकार इसे सॉल पहने हुए पुरोहित राजा के रूप में भी संबोधित करते हैं ।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त कांसे की नृत्यरत मूर्ति
- इस मूर्ति में दाहिना हाथ कमर पर है जिसमें कुल 4 चूड़ियां दिखाई देती है।
- बाएं हाथ में एक पत्र है जिसमें कलाई से लेकर बांह तक चूड़ियां पहनी हुई है और गले में एक हार धारण किया हुआ है ।
- सोने की 6 लड़ियों वाला हार हड़प्पा से प्राप्त हुआ है ।
- जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक द डिस्कवरी ऑफ इंडिया में सिंधु घाटी सभ्यता के मोहनजोदड़ो स्थल का उल्लेख किया है ।
मोहनजोदड़ो का वृहद स्नानागार
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार के निर्माण में ईट, जिप्सम व चारकोल का प्रयोग किया गया है । यह विश्व का प्रथम वॉटरप्रूफ साक्ष्य माना जाता है ।
- स्नानागार के उत्तर तथा दक्षिणी पार्श्व कोनों में उतरने हेतु 9-9 सीढ़ियां बनी हुई थी ।
- वर्तमान में चूने की अधिकता के कारण इसकी दक्षिणी सीढ़ियां विलुप्त हो गई है ।
- इस स्नानागार का धार्मिक महत्व था ।
- स्नानागार के समीप कुछ आवास बने हुए हैं जिन्हें अर्नेस्ट मैके ने पुरोहित या पुजारियों का आवास बताया है ।
- जॉन मार्शल ने इसे तत्कालीन विश्व का आचार्य जनक निर्माण, विराट वस्तु (ग्रेट बाथ) कहा है ।
- डी. डी. कौशांबी ने इसकी तुलना पुष्कर के कमलताल से की है|
- स्नानागार में प्रवेश हेतु दक्षिण में दो बड़े द्वार तथा उत्तर-पूर्व में एक बड़ा प्रवेश द्वार मिला है ।
- स्नानागार के उत्तरी भाग में छोटे-छोटे 8 स्नान कक्ष मिले हैं तथा इसके समीप ही जल संग्रहण हेतु टैंक बने हुए हैं ।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त अन्नागार
- मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी ईमारती संरचना अन्नागार है जो 45.72 * 22.86 मीटर है ।
- अन्नागार का बाहरी आवरण लकड़ी से निर्मित है जिसमें कुल 27 खंड है तथा ये एक गलियारे के माध्यम से जुड़ा हुआ है ।
- इस अन्नागार में 4.5 मीटर चौड़ी सीढ़ियां बनी हुई है जो कि संपूर्ण सैंधव सभ्यता में सबसे विशाल सीढ़ियों का एकमात्र अवशेष माना जाता है ।
- अन्नाकर के समय उत्तर दिशा में ईंटों से निर्मित एक चबूतरा मिला है जिसे मार्टिन व्हीलर ने लोडिंग लॉज/ लोडिंग पैड/ लोडिंग डॉक कहा है ।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपतिनाथ
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मोहर पर तीन मुख वाले देवता का अंकन मिलता है जो कि ध्यान में लीन है ।
- उनके चारों तरफ भैंसा, हाथी, गेडा व व्याग्र का अंकन मिलता है ।
- इसके निचले भाग पर संभवतः दो हिरण है जबकि ऊपरी भाग पर एक मछली के साथ सिंधु लिपि के 7/9 चित्राक्षर उत्कीर्ण है ।
- जॉन मार्शल ने इसे पशुपतिनाथ (आद्यतम शिव) कहा है ।
- वर्तमान में इस मोहर का समीकरण तांत्रिक की मोहर के साथ में किया जा रहा है ।
मोहनजोदड़ो से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- स्टुअर्ट पिग्गट ने मोहनजोदड़ो व हड़प्पा को किसी विशाल साम्राज्य की जुड़वा राजधानी कहा है ।
- मोहनजोदड़ो का व्यापक रूप से उत्खनन 1930 में अर्नेस्ट मैके, 1945 में
- मार्टिमर व्हीलर और 1965 में जॉर्ज डेल्स के द्वारा किया गया ।
- मोहनजोदड़ो से किसी भी प्रकार के कब्र के साक्ष्य नहीं मिले हैं । संभवत: यहां पर दाह संस्कार प्रचलित रहा होगा ।
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त कंकालों से के. यू. आर. कनेडियां को मलेरिया के साक्ष्य से मिले हैं तथा उन्होंने इस सभ्यता के पतन का कारण महामारी बताया है ।
- मोहनजोदड़ो की शासन व्यवस्था जनतंत्रात्मक थी ।
- मोहनजोदड़ो से महाविद्यालय भवन, मंगोलियन पुजारी का सिर, यूनिकॉन अंकित चांदी की मोहर (एक सिंह वाला बैल), चांदी के पात्र में लिपटा हुआ सूती कपड़ा (वस्त्र), 16 तांबा गलाने की भटियां ।
- मोहनजोदड़ो से प्राप्त मृदभांडों पर कांच के समान ऑपकारी की गई है जो कि विश्व में ऑपकारी का प्रथम प्रमाण माना जाता है ।
- मोहनजोदड़ो से हाथी का कपाल खंड तथा घोड़े के दंत के अस्थि अवशेष प्राप्त हुए हैं ।
- मोहनजोदड़ो एकमात्र ऐसा स्थल है जहां से कुम्हारों की बस्ती व 6 भट्टे मिले हैं ।
- बकरे के पीछे चाकू लिए हुए व्यक्ति का चित्रण, 20 स्तंभों वाला भवन, कांसे से निर्मित भैंस व मेंढे की आकृति, पट्टेदार जल नकाशी, कुबडदार बेल का खिलौना, मोहरों पर सुमेरियन नाव का अंकन तथा चांदी का कलश भी प्राप्त हुआ है ।
- सर्वाधिक कुऐ मोहनजोदड़ो से ही प्राप्त हुए हैं ।
- 1947 के विभाजन के समय मोहनजोदड़ो से एक मनको से निर्मित हर प्राप्त हुआ है जिसको लेकर भारत व पाक के मध्य विवाद रहा और बाद में इसका बंटवारा कर दिया गया ।