सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल बनावली, रोपड़, सुरकोटड़ा और धोलावीरा के कोचिंग नोट्स यहां दिए गए हैं । यदि आपने इन टॉपिक के नोटिस अच्छे से पढ़ लिए तो परीक्षा में सिलेक्शन से आपको कोई रोक नहीं सकता ।
सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख स्थल बनावली
- बनावली की खोज 1973 में R.S. बिष्ट के द्वारा की गई थी।
- बनावली हरियाणा में रंगोई (प्राचीन सरस्वती) नदी के किनारे स्थित था ।
- बनावली से उत्तम किस्म के जौ के साक्ष्य, दिल के ढेर, सरसों के ढेर, तांबे के बाणाग्र, मिट्टी से निर्मित हल, मातृ देवी की मृणमूर्ति, लघु मोहरे और मिट्टी से निर्मित मृदभांड मिले हैं ।
- फतेहाबाद (हरियाणा) स्थित बनावली से कुछ गड्ढे प्राप्त हुए हैं जिन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानव यहां गिरतावास में निवास करता होगा ।
- बनावली संपूर्ण सैंधव सभ्यता का एकमात्र ऐसा स्थल था जहां से नाली व्यवस्था का अभाव देखने को मिलता है ।
सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख स्थल रोपड़
- स्वतंत्र भारत में खोजा गया व उत्खनित प्रथम स्थल रोपड़ हैं ।
- पंजाब में सतलज नदी के किनारे स्थित रोपड़ की खोज 1950-51 ईस्वी में बी. बी लाल के द्वारा की गई ।
- रोपड़ का उत्खनन 1956 ईस्वी में यज्ञदत्त शर्मा के द्वारा किया गया ।
- रोपड़ से मानव के साथ कुत्ते के श्वाधान के प्रथम साक्ष्य प्राप्त होते हैं तथा एक तांबे की कुल्हाड़ी के भी साक्ष्य मिले हैं ।
सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख स्थल सुरकोटड़ा
- गुजरात के कच्छ के रण में स्थित सुरकोटड़ा की खोज 1964 ईस्वी में जगपति जोशी के द्वारा की गई ।
- सुरकोटड़ा से घोड़े के अस्थि अवशेष, शॉपिंग मॉल तथा तराजू के दो पलड़े मिले हैं ।
- सुरकोटड़ा से विशेष प्रकार के कब्र प्राप्त हुए हैं । जिनमें अलंकृत कलश रखे हुए थे और इन कलशों की संख्या 4 थी ।
- सैंधव सभ्यता के सुरकोटड़ा स्थान से प्राप्त श्वाधान के आधार पर यह कह सकते हैं कि मेसोपोटामिया सभ्यता व सिंधु सभ्यता के समकालीन थी या श्वाधान प्रणाली एक जैसी थी ।
- सैंधव सभ्यता के सुरकोटड़ा स्थल से पतन के साक्ष्य मिले हैं ।
- सैंधव सभ्यता के लोथल स्थल से पत्तन के साक्ष्य मिले हैं ।
सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख स्थल धोलावीरा
- धोलावीरा शब्द का शाब्दिक अर्थ – सफेद कुआं होता है ।
- 26 जनवरी 2001 तक सैंधव सभ्यता का स्थल धोलावीरा सामान्य गांव के रूप में स्थित था ।
- गुजरात के भचाऊ तालुका (तहसील) में स्थित धोलावीरा की खोज 1967 में जगपति जोशी के द्वारा की गई ।
- धोलावीरा का उत्खनन 1991 ईस्वी में R.S. बिष्ट के द्वारा किया गया ।
- धोलावीरा मनहर वह मानसर नदियों के संगम पर स्थित था ।
- धोलावीरा को सैंधव सभ्यता का सबसे सुंदर नगर माना जाता था जिसका स्थानीय नाम कोटड़ा-टिब्बा है ।
- धोलावीरा सैंधव सभ्यता का एकमात्र ऐसा स्थल था जो कि पाषाण (पस्तर) से निर्मित था ।
- धोलावीरा संपूर्ण सैंधव सभ्यता का एकमात्र ऐसा स्थल है, जिसके सर्वाधिक प्रवेश द्वार हैं ।
- धोलावीरा एकमात्र ऐसा स्थल है जहां से विश्व के प्राचीनतम स्टेडियम के साक्ष्य मिलते हैं ।
- धोलावीरा से प्राप्त स्टेडियम के चारों ओर दर्शकों के बैठने हेतु सीढ़ियां बनाई गई थी ।
- धोलावीरा से प्राप्त स्टेडियम का प्रयोग बड़े सामूहिक समारोह के आयोजन हेतु किया जाता था ।
- धोलावीरा के उत्तर-पूर्व भाग में स्टेडियम स्थित था तथा इस स्टेडियम हेतु अलग से रक्षा प्राचीर बनाई गई थी ।
धोलावीरा में जल संग्रहण
- धोलावीरा में वर्षा के जल संग्रहण हेतु 16 विशाल जलाशयों के साक्ष्य मिले है ।
- धोलावीरा के 16 जलाशयों से में से एक जलाशय में उतरने हेतु 32 सीढ़ियां बनी हुई है ।
- धोलावीरा में आंशिक रूप से नहर या बांध के साक्ष्य मिले हैं ।
- धोलावीरा से नेवले व गिरगिट की पाषाण प्रतिमाएं प्राप्त हुई है ।
- धोलावीरा एकमात्र ऐसा स्थल है जहां से राजसभा भवन के साक्ष्य मिले हैं ।
धोलावीरा से प्राप्त सूचना पट्ट
- धोलावीरा से प्राप्त सूचना पट्ट लकड़ी के पट्टे पर जिप्सम का प्रयोग करके तैयार किया गया था जिस पर सैंधव लिपि के 10 अक्षर मिलते हैं ।
- धोलावीरा संपूर्ण सैंडल सभ्यता का एकमात्र ऐसा स्थल है था जो कि तीन भागों में विभाजित था ।
- 1. .दुर्ग टीला
- 2. मध्यमा – इसके चार प्रवेश द्वार मिले हैं तथा यहां व्यापारी वर्ग व कुछ प्रशासनिक अधिकारी भी निवास करते थे ।
- 3. नगर टीला – यहां से मनके व शंख निर्माण के साक्ष्य मिले हैं ।