सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख स्थल हड़प्पा और चन्हूदड़ो के कोचिंग नोट्स यहाँ दिये गये है । इन नोट्स के तथ्य आपको लक्ष्य से 4 कदम आगे रखेंगे इसलिए इन नोट्स को बारिकी से पढ़े ।
सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख स्थल हड़प्पा
- जॉन मार्शल के निदेशक के समय, हड़प्पा की खोज 1921 में दयाराम साहनी के द्वारा की गई ।
- हड़प्पा मोंटगोमरी (शाहिवाली) पंजाब (पाकिस्तान) में रावी नदी के बाएं तट पर स्थित है ।
- हड़प्पा का उत्खनन 1921 में दयाराम साहनी, 1926 में माधोस्वरूप वत्स और 1946 में मार्टिमर व्हीलर द्वारा किया गया ।
- हड़प्पा नगर दो भागों में विभाजित था ।
- हड़प्पा का दुर्ग टीला नदी के पेटे पर स्थित था जहां से 6-6 की 2 पंक्तियों में कुल 12 अन्नागार प्राप्त हुए हैं ।
- हड़प्पा से गेहूं व जौ के प्रथम साक्ष्य प्राप्त हुए हैं ।
- उत्तम किस्म की जौ के साक्ष्य हरियाणा स्थित बनावली से प्राप्त होते हैं ।
- हड़प्पा से प्राप्त अन्नागारों को संपूर्ण सैंधव सभ्यता की दूसरी सबसे बड़ी स्थापत्य संरचना (ईमारत) मानी जाती है ।
- संपूर्ण सैंधव सभ्यता की सबसे बड़ी स्थापत्य संरचना लोथल का गोदीवाडा (बंदरगाह) (प्राकृतिक) हैं ।
- हड़प्पा के नदी के पेटे के क्षेत्र से 4 नाव के साक्ष्य मिले हैं ।
- दुर्ग टीले व नगर टीले के मध्य ईंटों का वृताकार चबूतरा प्राप्त हुआ है । जो संभवत: बड़े अवसरों पर महिलाओं द्वारा अनाज साफ करने के लिए प्रयोग किया जाता होगा ।
- ऋग्वेद में हड़प्पा को हरियूपिया कहा गया है ।
- हड़प्पा के नगर टीले के दक्षिणी भाग से दो प्रकार के कब्र R-37 व कब्रिस्तान-H प्राप्त हुए हैं ।
हड़प्पा से प्राप्त अन्य अवशेष
- हड़प्पा से प्राप्त तांबे की वस्तुओं में 16 भट्टीयां, इक्कागाड़ी, मानव प्रतिमा, दर्पण, पैमाना और प्रसाधन मंजूषा (make Up Box) प्राप्त हुई है ।
- हड़प्पा से पाषाण निर्मित ‘प्रस्तर योगी की मूर्ति’ और बिना धड़ वाले पुरुष (लाल बलुआ पत्थर से निर्मित) प्राप्त हुए हैं ।
- मृदभांडों पर मातृदेवी अंकन, मछुआरा जाल सहित, कछुआ व खरगोश का अंकन और दूध पिलाती हिरनी का अंकन किया गया है ।
- हड़प्पा एकमात्र ऐसा स्थल है जहां से मिट्टी से निर्मित टोकरी प्राप्त हुई हैं ।
- हड़प्पा से प्राप्त अवशेष में शंख से निर्मित बैल, गधे की हड्डियां, खरगोश की हड्डियां, धान कूटने की ओखली, मानव के साथ बकरे के श्वाधान तथा स्वास्तिक चिन्ह इत्यादि ।
हड़प्पा में उपासना से संबंधित प्राप्त साक्ष्य
- मातृ देवी उपासना में स्त्री के गर्भ से निकलते हुए पौधे की मृण मूर्ति प्राप्त हुई है ।
- मार्शल महोदय ने इस मातृदेवी के रूप को शाकंभरी माता अर्थात पृथ्वी देवी कहा है और राखालदास बनर्जी भी मार्शल महोदय के इस कथन का समर्थन करते हैं ।
- हड़प्पा वासियों ने इसे उर्वरा देवी कहा है तथा वेंकटेश महोदय ने इसे दीप लक्ष्मी कहकर संबोधित किया है ।
- हड़प्पा से प्राप्त एक मोहर पर नग्न स्त्री सिर झुकाए तथा पैर फैलाए हुए हैं और उसके गर्भ से एक पौधा निकलते हुए दिखाया गया है तथा मोहर के दूसरे भाग पर हंसिया लिए हुए व्यक्ति का चित्रण है ।
- हड़प्पा से एक पाषाण निर्मित नृतकी (मातृदेवी) की प्रतिमा भी प्राप्त हुई है ।
- हड़प्पा से प्राप्त एक मोहर पर पीपल के वृक्ष की दो शाखाओं के मध्य खड़ी स्त्री का भी अंकन मिलता है तथा इस वृक्ष के नीचे एक व्यक्ति बकरा लिए हुए खड़ा है ।
- हड़प्पा से विवाहिता तथा गर्भवती नग्न महिलाओं की मृण मूर्तियां भी प्राप्त हुई है ।
- हड़प्पा से नृत्य करते हुए पुरुष की पाषाण प्रतिमा प्राप्त हुई है जिसे मार्शल महोदय ने नटराज शिव का आदिरूप माना है ।
हड़प्पा से प्राप्त मोहरे
- हड़प्पा से प्राप्त मोहरों पर जहाज व नाव का अंकन मिलता है तथा स्त्री के गर्भ से निकलते हुए पौधे का अंकन भी मिलता है ।
- हड़प्पा से प्राप्त मोहरों पर गरुड़ के पंजों में दबे हुए सांप या सर्प का अंकन मिलता है, मोहर पर डोल लिए हुए पुरुष का अंकन मिलता है तथा नर बलि का संकेत करती हुई अनेक मोहरे प्राप्त हुई है ।
- सर्वाधिक अभिलेख युक्त मोहरे हड़प्पा से प्राप्त हुई है जबकि सर्वाधिक मोहरे मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुए हैं ।
- मोहनजोदड़ो से संपूर्ण सैंधव सभ्यता की 69% मोहरे जबकि हड़प्पा से 18% मोहरे प्राप्त हुई है ।
मोहरे क्या है
- मोहरों का प्रयोग टोकन के रूप में किया जाता था अर्थात मोहरों का सामान की सुरक्षा की दृष्टि से प्रयोग होता था ।
- मोहरों का प्रयोग ताबीज के रूप में भी किया जाता था ।
- वस्तु विनिमय व मुद्रा के रूप में मोहरों का उपयोग नहीं किया जाता था ।
- मोहरों के निर्माण में सबसे ज्यादा सेलखड़ी अर्थात (स्टेटाइट) का प्रयोग होता था तथा यह सेलखड़ी राजस्थान व गुजरात से मंगाई जाती थी ।
- इसके अलावा मोहरों के निर्माण में फेयन्स व लाजवर्ज का भी प्रयोग होता था तथा इनको गुजरात के रंगपुर व लोथल से मंगवाया जाता था ।
सिंधु घाटी का प्रमुख स्थल चन्हुदड़ो
- सिंधु नदी के तट पर स्थित चन्हूदड़ो की खोज 1930-31 में एन. जी. मजूमदार के द्वारा की गई ।
- चन्हूदड़ो का उत्खनन 1935 में अर्नेस्ट मैके के द्वारा किया गया ।
- चन्हूदड़ो एक औद्योगिक नगर था
- चन्हूदड़ो से मनके बनाने के कारखाने तथा गुड़िया निर्माण के साक्ष्य, पीतल की इकागाड़ी के साक्ष्य, स्याही की दवात के साक्ष्य, लिपस्टिक के साक्ष्य (रंजन श्लाका), हाथी का खिलौना, बिल्ली के पीछे भागते हुए कुत्ते के पद चिन्ह आदि प्राप्त हुए है ।
- चन्हूदड़ो सैंधव सभ्यता का एकमात्र ऐसा स्थल है जहां से वक्राकार ईंटे प्राप्त हुई हैं । संभवत: इन ईंटों का प्रयोग कुएं की दीवार बनाने में किया जाता होगा ।
- चन्हूदड़ो से किसी भी प्रकार के दुर्ग के साक्ष्य नहीं मिले हैं ।
- चन्हूदरो एकमात्र ऐसा स्थल है जहां से झुकर झागर के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं ।
- सिंधु घाटी सभ्यता के चन्हूदड़ो स्थल से प्राप्त साक्ष्य के आधार पर हम लोग यह कह सकते हैं कि सिंधु और वैदिक सभ्यता दोनों समानांतर सभ्यता रही होगी ।
- झागर संस्कृति से पत्थर के बटकरे नहीं मिलते हैं।